भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अटोप / नीलोत्पल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीलोत्पल |अनुवादक= |संग्रह=पृथ्वी...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
13:45, 23 दिसम्बर 2014 के समय का अवतरण
पहाड़ों में, घाटियों में
बिखरता है धुंआ
और छिप जाता है सब कुछ
पेड़़ों से गिरी पत्तियां भी
मैं जानता हूं
कैसे छिप जाता है चेहरा
आभासी बातों से
नक़ली हैं वे सारी चीज़ें
जो याद दिलाती हैं
कि हम हैं
हम याने एक क़िस्म का मखौल
मैं जानता हूं, केवल मैं
कैसे बिखरता है धुंआ
और अटोप लिया जाता है हमं
हमारी कोई तस्वीर सुरक्षित नहीं
यह जंगल भरा हुआ है जले प्रतीकों से