भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"लका मे हनुमान अलबेले राम / बुन्देली" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |रचनाकार=अज्ञात }} {{KKLokGeetBhaashaSoochi |भाषा=बुन्देल...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

22:11, 23 जनवरी 2015 के समय का अवतरण

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

लंका में हनुमान, अलबेले राम
काहे को सोटा काहे को लंगोटा
काहे चढ़ा दूं चोला।
सोने को सोटा, लाख को गोटा
सेंदुर चढ़ाय दऊं चोला।
बन-बन भटके फिरत अकेले
डाले फूलन को सेला। लंका में...।
काहे को मुकुट, काहे को मुस्टक
काहे को बनहै झेला।
सोने को मुकुट, चंदन की मुस्टक
फूलों का डाले झेला। लंका में...।