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♦ रचनाकार: अज्ञात
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आ गई रे बरसात सुहानी
चारऊ ओर भई हरियाली,
धरती ने पहिरी चूनर धानी। आ गई...
झूला पड़ गओ डाली-डाली
आम पे बोले कोयल रानी। आ गई...
रिमझिम-रिमझिम मेहा बरसे,
ताल तलैयन भर गयो पानी। आ गई...
दादुर मोर पपीहा बोलो,
कैसी प्यारी ऋतु ये लुभानी। आ गई...