भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"ऊँचों खैरो डगमगो गुन गाइये / बुन्देली" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |भाषा=बुन्देली |रचनाकार=अज्ञात |संग्रह=ब...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
12:55, 11 मार्च 2015 के समय का अवतरण
बुन्देली लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
ऊँचों खैरो डगमगो गुन गाइये
औ जा पै बैठे गनेस, गनेस मनाइये।
टूटे जुरे सनेह गनेस मनाइये।
इ कलजुग में दो बाड़े
इक धरनी दूजौ मेघ।
मेघा बरसे धरनी उपजे
जासें घर पूरन हो जाये। गुन गाइये...
इ कलजुग में दो बाड़े
इक घोड़ी दूजी गाय
गाय कौ बछड़ा हल जाते घोड़ी कौ रन फाराये।
गणेस मनाइये...
इ कलजुग में दो बाड़े
इक माई दूजी सास।
माई की कुखियन जनम लिये औ सासो दिये घर बार।
इ कलजुग में दो बाड़े
इक साईं दूजे वीर।
बीरन की पैरें चोखी चूनरी साईं को विलसें राज।
इ कलजुग में दो बाड़े
इक चूलौ दूजी खाट
खाट चढ़ बेटा जाइयौ चूले पै चरूआ धराऔ।
गाँवन गाँवन वे बसें औ घर घर दीपक लजायें।
ऊँचो खैरो...