भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सूक्ष्मा / दीप्ति गुप्ता" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दीप्ति गुप्ता |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
10:58, 19 मार्च 2015 के समय का अवतरण
तू इतनी सूक्ष्म, तू इतनी सूक्ष्म कि
तुझे देखा नहीं जा सकता
छुआ नहीं जा सकता
बस तुझे महसूस किया जा सकता है,
जब तेरा अस्तित्व तन मन में समा जाता है,
हर साँस बोझिल, दिल बुझा-बुझा हो जाता है,
तू "सूक्ष्म" पर तेरा बोझ कितना असहनीय!