भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जिनकौ सेर-सवेरे खइये / ईसुरी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ईसुरी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGeet}} {{KKCatBu...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
(कोई अंतर नहीं)

16:14, 1 अप्रैल 2015 का अवतरण

जिनकौ सेर-सवेरे खइये,
जिये बिसेख डरइये।
नौ-दस माँस गरम में राखौं।
जिनैं पीठ ना दइये।
नर-नारी को कौन बला-बल,
जिनकी संगत गइये।
सब जग रूठौ-रूठौ रन दो,
राम न रूठौ चइये।
ईसुर चार भुजा बारे खाँ,
का दो भुजा निरइये।