भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बलवानों की जननी / सुवर्णसिंह वर्मा ‘आनंद’" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुवर्णसिंह वर्मा ‘आनंद’ |अनुवाद...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

22:30, 1 मई 2015 के समय का अवतरण

रचनाकाल: सन 1930

हम बलवानों की जननी हैं, तुमको बलवान बना देंगी,
हम अबला हैं या सबला हैं, तुमको यह ध्यान दिला देंगी।

हम देश-भक्ति पर मरती हैं, न्यौछावर तन-मन करती हैं,
हम भारत के दुख हरती हैं, होकर कुर्बान दिखा देंगी,

हम मद्य प्रचार मिटा देंगी, परदेशी वस्त्र हटा देंगी,
हम अपना शीश कटा देंगी, पर तुम्हें सुराज दिला देंगी।

हम दुर्गा, चंडी, काली हैं, आज़ादी की मतवाली हैं,
हम नागिन डसने वाली हैं, दुश्मन का दिल दहला देंगी।

हम शांतचित्त हैं, ज्ञानी हं, हम ही झांसी की रानी हैं,
यह अटल प्रतिज्ञा ठानी है, भारत स्वाधीन करा देंगी।