भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"यह पीर पुरानी हो / जानकीवल्लभ शास्त्री" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जानकीवल्लभ शास्त्री }} <poem> यह पीर पुरानी हो ! मत र...)
 
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=जानकीवल्लभ शास्त्री  
 
|रचनाकार=जानकीवल्लभ शास्त्री  
 
}}  
 
}}  
 +
{{KKCatKavita}}
 
<poem>
 
<poem>
 
 
यह पीर पुरानी हो !
 
यह पीर पुरानी हो !
मत रहो हाय, मैं, जग में मेरी एक कहानी हो ।
+
मत रहो हाय, मैं, जग में मेरी एक कहानी हो।
  
 
मैं चलता चलूँ निरन्तर अन्तर में विश्वास भरे,
 
मैं चलता चलूँ निरन्तर अन्तर में विश्वास भरे,
 
इन सूखी-सूखी आँखों में, तेरी ही प्यास भरे,
 
इन सूखी-सूखी आँखों में, तेरी ही प्यास भरे,
मत पहुँचु तुझ तक, पथ में मेरी चरण-निशानी हो ।
+
मत पहुँचु तुझ तक, पथ में मेरी चरण-निशानी हो।
  
 
दूँ लगा आग अपने हाँथों, मिट्टी का गेह जले,
 
दूँ लगा आग अपने हाँथों, मिट्टी का गेह जले,
 
पल भर प्रदीप में तेरे मेरा भी तो स्नेह जले,
 
पल भर प्रदीप में तेरे मेरा भी तो स्नेह जले,
जल जाये मेरा सत्य, अमर मेरी नादानी हो ।
+
जल जाये मेरा सत्य, अमर मेरी नादानी हो।
  
 
वह काम करूँ ही नहीं, न हो जिससे तेरी अर्चा,
 
वह काम करूँ ही नहीं, न हो जिससे तेरी अर्चा,
 
वह बात सुनूँ ही नहीं, न हो जिसमें तेरी चर्चा,
 
वह बात सुनूँ ही नहीं, न हो जिसमें तेरी चर्चा,
जग उँगली उठा कहे : कोई ऐसा अभिमानी हो ।
+
जग उँगली उठा कहे : कोई ऐसा अभिमानी हो।
 
('तीर-तरंग)
 
('तीर-तरंग)
 
</poem>
 
</poem>

10:11, 18 मई 2015 के समय का अवतरण

यह पीर पुरानी हो !
मत रहो हाय, मैं, जग में मेरी एक कहानी हो।

मैं चलता चलूँ निरन्तर अन्तर में विश्वास भरे,
इन सूखी-सूखी आँखों में, तेरी ही प्यास भरे,
मत पहुँचु तुझ तक, पथ में मेरी चरण-निशानी हो।

दूँ लगा आग अपने हाँथों, मिट्टी का गेह जले,
पल भर प्रदीप में तेरे मेरा भी तो स्नेह जले,
जल जाये मेरा सत्य, अमर मेरी नादानी हो।

वह काम करूँ ही नहीं, न हो जिससे तेरी अर्चा,
वह बात सुनूँ ही नहीं, न हो जिसमें तेरी चर्चा,
जग उँगली उठा कहे : कोई ऐसा अभिमानी हो।
('तीर-तरंग)