भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अभी तक / गंगाराम परमार" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गंगाराम परमार |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
13:33, 4 जुलाई 2015 का अवतरण
अन्धकार है, तो अन्धकार बोल के तो देख
सरकार है, तो सरकार बोल के तो देख
अब तो मैदान खुला है तुम्हारे लिए
फ़क़त मैदान में आ, तलवार-तलवार बोल के तो देख
उनके जूते का जूता बन न, अब तो
झूठ को झूठ और गद्दार को गद्दार बोल के तो देख
देख सुबह खड़ी है तेरे सामने
तू ख़बरदार है, तो ख़बरदार बोल के तो देख
रौशनी रौशनी, मैं दम-ब-दम हुआ
सामने मेरे, रफ़्तार-रफ़्तार बोल के तो देख
कोई नहीं आया चीर के आसमाँ यहाँ
एक बार, अवतार-अवतार बोल के तो देख
ज़िन्दगी भीख नहीं, अधिकार है
खुलेआम, अधिकार-अधिकार बोल के तो देख