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"बंदर सभा / पुरुषोत्तमदास टंडन 'राजर्षि'" के अवतरणों में अंतर

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हियाँ की बातें हियनै रह गईं, अब आगे के सुनौ हवाल,
गढ़ बंदर के देश बीच माँ पड़ा रहा एक खेत विशाल!

सौ जोजन लंबा अरु चौड़ा, अरबन बानर जाय समाय,
तामें बानर भये इकट्ठा जौन बचे वे आवैं धाय!

जब सगिरा मैदनवा भरिगा, पूछें टोपी लगीं दिखाय,
सबके सब कुरसिन से उछले, हाथ-पाँव से ताल बजाय!

इतने माँ मल्लू-सा आए, बंदरी और मुसाहिब साथ,
बंदरी बड़ी चटक-चमकीली, थामे मल्लू-सा को हाथ!

ओढ़े गउन लगाए टोपी, हीरे जड़े पांत के पांत,
मटकत आवत, भाव दिखावत, आखिर मेहरारू की जात!

-साभार: प्रदीप, 1905