भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"इक युवती / इमरोज़ / हरकीरत हकीर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=इमरोज़ |अनुवादक=हरकीरत हकीर |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

14:27, 13 जुलाई 2015 के समय का अवतरण

दरिया के उस पार से
किसी की बांसुरी इस पार को
मस्त कर रही थी...
दरख्त से सटकर खड़ी एक युवती
अपना आप भूल कर बांसुरी सुन रही थी
पास खड़ा वक़्त
बांसुरी के साथ भी मस्त हो रहा था
और युवती को देख -देखकर भी
अच्छी लगती युवती को
वक़्त ने पूछ ही लिया
बीबी तुम हीर हो या सोहणी...?
घर से चली तो मैं हीर थी
यह दरिया पार करके मैं
सोहणी हो जाऊंगी...