भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"चिट्ठी / रमेश तैलंग" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश तैलंग |संग्रह= }} {{KKCatBaalKavita}} <poem> चि...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
11:39, 14 जुलाई 2015 के समय का अवतरण
चिट्ठी हूँ, चिट्ठी,
मैं चिट्ठी तुम्हारी,
लायी हूँ घर-भर को
ख़ुश-ख़बरी प्यारी।
मुनुवा की दीदी का
गौना हुआ है,
चाची के घर में
सलोना हुआ है।
ठीक हुई दादी की
लम्बी बीमारी,
चिट्ठी हूँ, चिट्ठी,
मैं चिट्ठी तुम्हारी!
बंटी घुटनों–घुटनों
चलने लगा है,
दादा! दादा! दादा!
कहने लगा है।
ख़बरों की बन्द हुई
लो, अब पिटारी,
चिट्ठी हूँ, चिट्ठी,
मैं चिट्ठी तुम्हारी।