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भारतं नास्ति बहिर्
यद् दृश्यते साकारम्,
वर्तते यस्य
काऽपि सीमा,
यद् विभज्य
खण्डशः कृतं
तथाकथितैः देशभक्तैः
समये-समये
जातिभाषाभौगोलिकांचलाधारेण।
भारतं नास्ति बहिर्
भारतं तु तदेवाऽस्ति
यद् धावति
रुधिरं भूत्वाऽस्माकं
स्वतन्त्रताचराणां शिरासु
स्पन्दति च
हृदयं भूतं
भारतीयानां देहेषु॥