भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मेढक / आनंदीप्रसाद श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आनंदीप्रसाद श्रीवास्तव |अनुवादक...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

16:20, 21 अगस्त 2015 के समय का अवतरण

किस तरह मेढक फुदकता जा रहा,
देखने में क्या मजा है आ रहा!
कूदते चलते भला हो किस लिए,
तुम मचलते हो भला यों किसलिए!
बाप रे, गिरना न थाली में कहीं
दाल के भीतर खटाई की तरह,
हाथ पर आ बैठ जाओ खेल लो
साथ मेरे आज भाई की तरह!
थे छिपे टर्रा रहे तुम तो कभी
पर नहीं क्यों बोल सकते हो अभी!
बात हमसे क्या करोगे तुम नहीं
देख लो तुम तो भगे जाते कहीं!

-साभार: बालगीत साहित्य (इतिहास एवं समीक्षा), निरंकारदेव सेवक, 156