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"आँसू खारे क्यों हैं / असंगघोष" के अवतरणों में अंतर

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21:39, 14 अक्टूबर 2015 के समय का अवतरण

आँखों से
बहते पानी ने
पलकों से पूछा
मैं खारा क्यों हूँ?

झपकती हुई बोलीं पलकें
सुख-दुख के समन्दर को
खुद में समेट रखा है
हमने

तुम मतवाले हो
मोती बन
हमारी कोर से
लुढ़कते हो ज्योंही
यह सुख-दुःख भी
बारी-बारी
थोड़ा-थोड़ा-सा
उन बूंदों में घुल-मिल
बाहर आ जाता है

यह सुख-दुःख का
समंदर ही
खारा है।