भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"आह्वान / असंगघोष" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=असंगघोष |अनुवादक= |संग्रह=हम गवाह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
03:10, 16 अक्टूबर 2015 के समय का अवतरण
मृत्यु!
तुम्हें आना है
कभी भी
अकस्मात
मुझे लीलने,
तुम आओगी तब तक
बचे क्षणों का
मैं कर लूँगा सदुपयोग
अपने संघर्ष को बढ़ाने
जीते-जी
अपने पुरखों के दलन की पीड़ा को
अभिव्यक्त कर दूँगा
मैं शूद्र रहते
नहीं मरूँगा
इसके लिए ही सही
मेरे लिए
कुछ पल पर्याप्त होंगे
भले ही मलेच्छ होना पड़े!