भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"चेकोस्लोवाकिया का प्रवास गीत / श्यामनन्दन किशोर" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्यामनन्दन किशोर |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
01:48, 27 अक्टूबर 2015 के समय का अवतरण
दिन का क्या? कट ही जाता है!
पर रात कटे? आसान नहीं!
कुछ भीड़ मिली, कुछ लोग मिले,
कैसे-कैसे संयोग मिले!
सब देव दिखायी पड़ते हैं
मिलता कोई इन्सान नहीं!
मन में कितने जज़बात भरे,
इस रात न कोई बात करे!
देता अजनबी बना मुझको,
ऐसा देखा सुनसान नहीं!
छत ही आकाश बना मेरा।
मन ही उच्छ्वास बना मेरा।
कुछ यश, कुछ धन, सम्मान मिले!
ये तो सुख के सामान नहीं!
(29.12.73)