"तुम लिखते रहना / मोहिनी सिंह" के अवतरणों में अंतर
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मोहिनी सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
00:40, 26 नवम्बर 2015 के समय का अवतरण
तुम लिखते रहना
जिसके सिरे हैं ख्वाबों की खिडकियों पर बंधे हुए
उन नज्मों की डोर पे मेरी रातें चलती हैं
मैं समझती हूँ कि ये कारीगरी कुछ और नहीं
ये ग़ज़लें मेरे अक्स सी तुझमें पलती हैं
तेरे हर 'तुम' में दर्ज है मेरी खुद को ढूंढने की कोशिश
जब लिखना तो ज़रा उलझा उलझा लिखना
बच्चे बना लेते हैं चाँद तारे और खिलौने
जरूरी है बस आसमाँ में बादलों का दिखना
छज्जों के बिच झांकते आसमां से तुम
शहर की सहर में धूप की गुंजाइश कितनी
सर्दियों में अलाव सी तेरी नज्में सेंकती मैं
जमते जज्बातों की हो बस ख्वाइश इतनी
न कागजों पे मेरे होंठों के निशान मिलेंगे
न उन अंगारों का हासिल मेरा दामन होगा
उधर तेरी नज्मों के चराग़ हों इधर मेरी वीरानियाँ
बीच में तेरे तगाफ़ुल का चिलमन होगा।
मैं चुप सी पढ़ूंगी
तुम लिखते रहना