भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मति मारो दृगन की चोट / ब्रजभाषा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |रचनाकार=चन्द्रसखी }} {{KKLokGeetBhaashaSoochi |भाषा=ब्रज...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

03:49, 27 नवम्बर 2015 के समय का अवतरण

   ♦   रचनाकार: चन्द्रसखी

मति मारो दृगन की चोट रसिया, होरी में मेरे लगि जायगी॥
मैं तो नारि बिराने घर की, तुम जो भरे बड़े खोट।
अबकी बार बचाय गई हूँ, घूँघट पट की ओट॥ मति.
रसिक गोविन्द वहीं जाय खेलौ, जहाँ तिहारी जोट।
‘चन्द्रसखी’ भज बालकृष्ण छबि, हरि चरनन की ओट