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गिरिजा-रमण चरित्र तव, निश्चित अपरम्पार।
औरों की तो बात क्या, वेद न पाये पार॥
अति मति मन्द गँवार बन, तुलसी कवि शिरमौर।
लिखा चरित्र तुम्हारा जस, तसन लिखा कोइ और॥
उस महान कवि चरण-रज, बन साहस के साथ।
लिखने तेरा चरित मैं, कलम लेलिया हाथ॥
हे ओढर दानी प्रभो! बीणा पाणि-उदार।
करो कृपा लिख सकूँ मैं शंकर चरित अपार॥