भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"माया नहीं मनुष्य / रंजना जायसवाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना जायसवाल |अनुवादक= |संग्रह=ज...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

23:38, 7 दिसम्बर 2015 के समय का अवतरण

तुम्हें माया नहीं
मनुष्य होना है स्त्री
देह से आजाद होना है
वह देह ही था
जिसके कारण बन्दिनी रही तुम
जादुई महलों और तहखानों में
और मर-खप गये
अनगिनत गरीब चरवाहे
गाते हुए तुम्हें अपने गीतों में
तुमने सीखा ही नहीं जमीन पर
चलना
बस उड़ती रही पतंग की तरह
उनके इशारे पर
और जब कटी तो खत्म हो गयी
जाने क्यों लता कहलाना
इतना भाता है तुम्हें
कि चढ़ भी नहीं पाती
बिना सहारे एक इंच भी
तुम्हें उबरना ही होगा
जादुई फूलों और राजकुमारों के
मोह से
और इस देह से।