भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"भजन-2 / नज़ीर अकबराबादी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नज़ीर अकबराबादी |संग्रह=नज़ीर ग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

14:21, 8 जनवरी 2016 के समय का अवतरण

भूल ठिठक हठ संग लगा करले हठ का बैराग
अरे मन ध्यान लगा दे।
माला पेम फिरा नित हिरदय भनक जतन से मार।
जोगी का विस्तार बना और कानों मुंदरे डाल
न ला पर दुविधा चित में।

फेरी फिर कर नाद बजा या अस्तल आसन मार। अरे मन.
सीख फकीरी पंथ मियाँ या ठान गृहस्थी छंद-
न दे टुक जी को डिगने।
जब लागेगी लाग सुरत धर बैठा कर आनंद-
बनज बना व्योपार चला या सब तज हो आजाद
न दे टुक तार बिखरने
ठहर गयी जब याद तो पा फिर भोजन और परसाद। अरे मन.

साथ कहा या संत कहा भक्ती पंथ बिचार,
तनक रख चित को थामे।
भूलेगी जब दूजी सुध तब ले पीतम दरबार-
अरे मन ध्यान लगा दे।
कर शब्दों के अर्थ सुना या नित्य कथा को बाँध-
लगाए रख धुन हाँ में।
जी की खेंचा खेंच गई फिर है तुझको है क्या आँच॥ अरे मन.

भेष बदल या मत बदले ह्यां बैठा रह हर आन
नजर मत फेर उधर से।
तुझसे नजीर अब कहता है जो ठीक उसी को जान
अरे मन ध्यान लगा दे।

शब्दार्थ
<references/>