भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"पत्थरों का शहर / निदा नवाज़" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निदा नवाज़ |अनुवादक= |संग्रह=अक्ष...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
12:34, 12 फ़रवरी 2016 के समय का अवतरण
तुम
आज भी मेरे पास हो
मेरे बहुत निकट
स्मृतियों में ढली हुई
वैसी ही गुम-सुम
अपने मुख पर
प्रश्नों का अम्बार लिए
प्यारे दिल का विस्तार लिए
मैंने सारे जग की मिटटी छानी
निकला ढूंढने उनके उत्तर
पर इस पत्थरों के शहर में
शीशे का कोई मोल कहाँ
मत रोओं, बिखराओ मोती
देखों मैं निराश नहीं हूँ
इन कजरारे मस्त नयन का
आमन्त्रण स्वीकार मुझे
आओ
रच लें अपनी एक सुंदर सृष्टि
पुरातन यादों की मधुर छाया में
वह पेड़ शहर से दूर
अलग।