भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सबके एक्के कहानी रहलोॅ छै / अमरेन्द्र" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमरेन्द्र |अनुवादक= |संग्रह=रेत र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

16:39, 6 मई 2016 के समय का अवतरण

सबके एक्के कहानी रहलोॅ छै
जकरोॅ धरती पेॅ पानी रहलोॅ छै
केना रधिया रोॅ रौल वैं करती
जे कि बच्चै सें रानी रहलोॅ छै
ओकरा दुनियाँ में कोय डरैतै की
जे कि काठी-कमानी रहलोॅ छै
इक समन्दर छै-कोय मछली केॅ
आरो कोय ह्वेल छानी रहलोॅ छै
रात में हेना हवा के ई सरसर
लागै शैव्या ही कानी रहलोॅ छै
प्यार हमरौ रहै - सबूतोॅ में
लोरे एकठो निशानी रहलोॅ छै
लोग चुप छै मतुर ई जानै छै
केकरोॅ की-की कहानी रहलोॅ छै
जे कि रावण बनी विरोधी छै
ओकरे दिश भी भवानी रहलोॅ छै
हमरोॅ चर्चा छै ठोरोॅ-ठोरोॅ पर
के नै हमराकेॅ जानी रहलोॅ छै

-1.6.91