भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बगरो / अमरेन्द्र" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमरेन्द्र |अनुवादक= |संग्रह=तुक्त...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
17:13, 6 मई 2016 के समय का अवतरण
बगरो खाय छैं खुद्दी तोंय
कहाँ सें पैबैं बुद्धी तोंय
फुदकी, कबदी, कुढ़लोॅ जो
आकि उड़ले-उड़लोॅ जो
बौंसी जाय गुड़झिलिया टान
जे मूरी-घुँघनी के खान
भले ही थक्की जैबै तोंय
कोठी बनी केॅ ऐबै तोंय।