भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"पावस के घन / अनिल शंकर झा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिल शंकर झा |अनुवादक= |संग्रह=लचक...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
09:56, 11 मई 2016 के समय का अवतरण
आशा में ताकौं निहारौं गगन,
कोन देश भुतलैलै पावस के घन?
धुरदा सें अटलोॅ छै महलो-अटारी,
जादुगर खोलनें छै फणिधर पेटारी।
गाछी के पात-पात मदहोश, हतभाग,
धरती नें मांगै जल करतल पसारी।
प्याल विष झुलसाबै रही-रही तन,
कोन देश भुतलैलै पावस के घन?
सुखलोॅ छै नदी-नाल, खाली छै ताल,
कोटर में बंद बिहग पूछै सबाल।
हवा आरो सूरज के कैहनोॅ ई होड़,
गर्मी नें धीरज के बाँही मरोड़।
पूछै, कहिया तक सहबै ई जलन?
कोन देश भुतलैलै पावस के घन?
जागै छै दुपहर तेॅ औंधै छै गाँव,
टुकुर-टुकुर ताकै छै बरगद के छाँव।
बिन्डुवोॅ अन्धड़ में भुतहा बैहार,
बरसें रे निर्मोही ई रं नै मार।
धरती केॅ जीवन दे हरसाबें मन,
कोन देश भुतलैलै पावस के घन?