भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बंदर मामा / अमरेन्द्र" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमरेन्द्र |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatAngi...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

01:13, 11 जून 2016 के समय का अवतरण

ई की तोरोॅ हाल छौं होलोॅ?
बंदर मामा, सच-सच बोलोॅ।
केकरोॅ हड़िया में मूँ देलौ?
की छेलै वै में, की खैलौ?
करखी ही मुँह पर भरलोॅ छौं,
हमरा तेॅ लागौं-जरलोॅ छौ।

जों करखी, तेॅ साबुन लै ला;
खूब नहाबोॅ घैला-घैला;
तबेॅ उछलियोॅ छप्पर-छोॅत;
नाशी देलोॅ सबटा लोॅत।
की पीलेॅ छै दारू-भांग,
दै रहलोॅ छौ बड़ी छलांग?