भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"लब्बोॅ घोॅर उठाबोॅ / मृदुला शुक्ला" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मृदुला शुक्ला |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

01:58, 11 जून 2016 के समय का अवतरण

बस्ती नया बसाबोॅ तोंय!
सबमें प्रेम समुन्दर होय केॅ
देश-देश लहराबोॅ तोंय!

लब्बोॅ मानवतै के नै बस
लब्बोॅ भारत रोॅ आशा छोॅ,
संघरषोॅ के कोलाहल में
प्रेम-प्यार रोॅ तों भाषा छोॅ,
सब तोरा में, तोंय सब्भे में
ई सोची हरसाबोॅ तोंय!
बस्ती नया बसाबोॅ तोंय!

छल-प्रपंच या जाति-धरम सें
हार नै कभियो मानयौ तोंय;
भटकी-भूली जे गेलोॅ छै
राह नया दिखलैयौ तोय;
अन्धेरा छै पापोॅ केरोॅ
दिया पुण्य के बारोॅ तोंय
बस्ती नया बसाबोॅ तोंय!

अभी अधूरा सपना हमरोॅ,
आधे छै जय रोॅ अभियान,
तोरे हाथें विजय-पताका,
तोरहै पर देशोॅ केॅ शान;
राह चुनौती सें भरलोॅ छौं
धजा-शान्ति फहराबोॅ तोंय!
बस्ती नया बसाबोॅ तोंय!
सबमें प्रेम समुन्दर होय केॅ
देश-देश लहराबोॅ तोंय!