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"मालधक्का / शरद कोकास" के अवतरणों में अंतर

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00:03, 1 जुलाई 2016 के समय का अवतरण

ज़रूरतों को ढोती हैं
ढोती हैं सुविधाओं को
मालधक्के पर
आती-जाती मालगाड़ियाँ

कवि को नहीं पता
जिस कलम से वह लिख रहा है
किस माल धक्के पर
किस माल गाड़ी से उतरा होगा

उसका लिखा कागज़
ले जाएगी कौन सी मालगाड़ी
कौन लाएगी स्याही
कौन छापेखाने की मशीन
कौन गोन्द कौन पुट्ठा लाएगी
उसकी कविता की किताब
किस मालधक्के पर उतरेगी
कोई कवि सही नहीं जानता

मालधक्के पर काम कर रहे
लोगों के लिए
कविता हो या गुड़ की भेली
सब माल है।

-1995