"उधार / शरद कोकास" के अवतरणों में अंतर
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अच्छा के पावों के लिए
जब छोटी पड़ जाती है
उपलब्धि की चादर
खड़ा हो जाता है आदमी
किसी दरवाजे़ पर
उधार मांगने के लिए
हैसियत के पलड़े पर
वह क्षमता का आखि़री बाँट रखता है
उन दरवाज़ों पर मत्था टेकता है
जहाँ वक़्त पड़ने पर
काम आने का आश्वासन मिला था
वह नहीं जानता
चूहे केवल कहानी में शेरों के काम आते हैं
वह विवशता का मुखौटा नहीं पहनता
याचना का अभिनय भी नहीं करता
वह बहानों और असलियत में फर्क नहीं करता
आदमी पर भरोसा उसके जीवन दर्शन में होता है
कहीं गालियाँ मिलती है कहीं दुत्कार
अंततः मिल जाता है उधार
अहसानों का बोझ लिए
वह पूरी करता है महीने की दौड़
हासिल होते ही लौटाता है वस्तुएँ
माँगा हुआ धन लौटाता है
संबंधों का तक़ाज़ा है आख़री
जो उधार नहीं लिए जा सकते किसी शर्त पर।
-1997