भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"झोपड़े / शरद कोकास" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शरद कोकास |अनुवादक= |संग्रह=हमसे त...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

00:33, 1 जुलाई 2016 के समय का अवतरण

ऊँची-ऊँची इमारतों के सिर पर
मुकुट की तरह सजा है चाँद

इसी चाँद को देखते हैं हम रोज
अपने छोटे-छोटे घरौंदों से
इसी से बातें करते हैं हम
इसी से अपने दुख-सुख कहते हैं

कल जब मैं कहीं दूर चला जाऊँगा
और हमारी बातें खत्म हो जाएँगी
चाँद फिर उसी तरह उगेगा आसमान में
लेकिन वह कभी नहीं जान सकेगा

कि झोपड़ों में रहने वालों की पहुँच
ऊँची इमारतों तक नहीं होती।

-2009