भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"उदासी से भरा आलम / सिया सचदेव" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सिया सचदेव |अनुवादक= |संग्रह=फ़िक...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
03:32, 5 जुलाई 2016 के समय का अवतरण
वही हैरान सी ख़ामोशियाँ है
वही चारों तरफ मायूसियाँ है
लगे सिमटा हुआ हर एक लम्हा
हाँ तन्हा जिस्म और ये जान तन्हा
बहुत बेरंग सा मौसम लगे है
उदासी से भरा आलम लगे है
मेरे दिल की चुभन जाती नहीं है
कोई भी शय मुझे भाती नहीं है
वो उठ कर रात को चुपचाप रोना
फिर एहसासों को लफ़्ज़ों में पिरोना
गिनूँ घड़ियाँ कटेगी रात ये कब
सह्ऱ की आस में बैठी हूँ मैं अब
न जाने कब वो आएगा सवेरा
कि ये जीना, मुकम्मल होगा मेरा