भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अनाम / हरीशचन्द्र पाण्डे" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरीशचन्द्र पाण्डे |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
04:40, 5 जुलाई 2016 के समय का अवतरण
उस दिन वह आग कल्छुल में आयी थी पड़ोस के घ्ज्ञर से
फूँकते-फूँकते अंगारों को न बुझते देते हुए
कभी-कभी
बुझ ही जाती है घर की सहेजी आग
दाता इतराया नहीं
और इसे पुण्य समझना भी पाप था
रखें तो कहाँ रखें इस भान को
पुण्य और पुण्य से परे भी है कुछ अनाम
जैसे
दिवंगता माँ के नवजात को मिल ही जाती है
कोई दूसरी भरी छाती...