भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"साथ हैं फिर / पंख बिखरे रेत पर / कुमार रवींद्र" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार रवींद्र |अनुवादक= |संग्रह=प...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
00:30, 15 जुलाई 2016 के समय का अवतरण
दिन पहाड़ी रास्तों के
और जंगल की हवाएँ
साथ हैं फिर
दूर नीचे कहीं छूटे
शोरगुल पिछले शहर के
खुशबुओं से बात करते
घने साये दोपहर के
धूप की पगडंडियाँ
नीलाभ सपनों की ऋचाएँ
साथ हैं फिर
नदी-झरने संग
उनके तले की चट्टान
हँसती बह रही है
दूर ऊपर कहीं
बरफीीली शिलाएँ कह रही हैं
और ऊपर आओ- देखो
ऋषि तपोवन- अप्सराएँ
साथ हैं फिर