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"साथ हैं फिर / पंख बिखरे रेत पर / कुमार रवींद्र" के अवतरणों में अंतर

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00:30, 15 जुलाई 2016 के समय का अवतरण

दिन पहाड़ी रास्तों के
और जंगल की हवाएँ
साथ हैं फिर
 
दूर नीचे कहीं छूटे
शोरगुल पिछले शहर के
खुशबुओं से बात करते
घने साये दोपहर के
 
धूप की पगडंडियाँ
नीलाभ सपनों की ऋचाएँ
   साथ हैं फिर
 
नदी-झरने संग
उनके तले की चट्टान
हँसती बह रही है
दूर ऊपर कहीं
बरफीीली शिलाएँ कह रही हैं
 
और ऊपर आओ- देखो
ऋषि तपोवन- अप्सराएँ
साथ हैं फिर