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"सब झूठ / शब्द प्रकाश / धरनीदास" के अवतरणों में अंतर
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राव राना जिते शाह पतिशाह ते, झूठ के फन्द नहि कोहु बाँचे।
झूठ पण्डित कहै, कव्वि झूठी चहै, और को निर्वहै पिंड काँचे॥
भेस रचि पचिया झूठ नहि बाचिया, दैखि परपंच मन मग्न नाचे।
झूठ संसार व्यवहार धरनी कहै, जक्तमें कोइ कोइ भक्त साँचे॥7॥