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10:06, 21 जुलाई 2016 के समय का अवतरण

दियो जिन प्रान कथा सुख संपति बीच मिले वहु नेह न कोरे।
होत कहाँ व कहा कहि आव, सो क्यों विसराय करो कछु औरे॥
योग न त्याग विराग गहो, धरनी धन-काज कहाँ पचि दौरे।
अन्तहु तो तजि है सब तोहि सो तून तमजो अबही किन बौरे॥27॥