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"गणेश विनय / शब्द प्रकाश / धरनीदास" के अवतरणों में अंतर
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वारन बदन एक रदन अनेक पलु, पल जो प्रसन्न होत करत धनेश जी।
विधिन-हरन सुख-करन मरन नाहि, जाके सुमिरेते तन होत न कलेश जी॥
सिद्धि-ऋद्धि दायक विनायक सहायक हो, धरनि रुचत पग पुजत सुरेश जी।
उँदुर वाहन जाके सिंदुर सोभाय माथे, ज्ञान ध्यान को निधान देवता गणेश जी॥7॥