भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मरसिया / शब्द प्रकाश / धरनीदास" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धरनीदास |अनुवादक= |संग्रह=शब्द प्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

23:55, 21 जुलाई 2016 के समय का अवतरण

219.

पानी ते पैदा कियो, ऐसा खसम खोदाय।
दहाभवो दस मास को, तर सिर ऊपर पाय॥
आँच लगी जब आगि की, आजिज होइ अकुलाय।
कोलकियो मुख आपने, ना कहु अंक लिखाय॥
कैसे करिहो वंदगी, जो पायउ मुकुराय।
जग आये जंगल परा, भरमि रहा अरुझाय॥
परकी पीर न जानिया, नाहक छुरी चलाय।
बाँधि जँजीरा जाइहो, बहुरो वही संजाय॥
सत गुरु को उपदेश ले, दोजख दर्द मिटाय।
मानुष देही दुर्लभा, धरनि कहत समुझाय॥1॥