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नायिका भेद
पतिहि सौं जिहि प्रीति सो सुकिया सलज सुरीति।
परकीयहि पर पुरुष सों गनिकहि धन सों प्रीति॥79॥
मनचिंता धन चखन तें चिंतामनि की रीति।
सखी सील कुलकानि अरु प्रीतम पावत प्रीति॥80॥
धरति न चौकी नगजरी यातें उर में ल्याइ।
छाँह परे पर पुरुष की जिन तिय धर्म नसाइ॥81॥
स्वकीया भेद
मुग्धा जामें पाइये जोबन आगम रीति।
मध्या में लज्जा मदन प्रौढ़ा में पति प्रीति॥82॥
मुग्धा-वर्णन
चख चलि भवन मिल्यौ चहत कच बढ़ छुबत छवानि।
कटि निज दर्बि धर्यौ चहत बच्छस्थलु मै आनि॥83॥
जिनको लच्छन नाम ते प्रकट होत अन्यास।
तिनको लच्छन भिक्ष करि मैं नहि करत प्रकास॥84॥