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सखा-कथन
जो नायक सो नायिका नीके मिलवै आनि।
नरम सचिव तेहि नर कहै सोइ चारि बिधि जानि॥662॥
नाम-भेद
पीठिमर्द बुधि बचन सों मानहिं देइ मिटाइ।
विट जो जानत दूतपन कै सब कला बनाइ॥663॥
चेटक है वह जो करै औसर देखि सुपास।
तौन विदूषक जो करै दंपति सो परिहास॥664॥
पीठिमर्द-उदाहरण
है कोई देखत नहीं सकै जो तुव तन आहि।
पिय प्यारी तू कौन की राखति है परदाहि॥665॥
काह भयौ है कहत हौं कत तू रही रिसाइ।
तेरे कोप करै कहौ कोप करै नहिं पाइ॥666॥
विट-उदाहरण
सेत बसन तैं जोन्हि में लखि न परत तव गात।
यौं कहि बोलेउ कामिनी आजु मिलन की घात॥667॥
सखी बीच नहिं दीजिये मिलिये पिय सँग धाइ।
बाम बामता नहिं तज्यौ अरी परेहूँ पाइ॥668॥
चेटक-उदाहरण
पिय तिय सखियन मैं लखी जबै काम की सैन।
चलौ बोलिहौं जाति हौं देखन अपनी धेन॥669॥
पिय मधुकर तिय नलिनि को लख्यौ आनि जब दाइ।
दुहुन मिलाइ सखा चल्यौ साझ समैं लै जाइ॥670॥
विदूषक-उदाहरण
रमनो रमन मिलाइ जब भयो कुंज की ओर।
जाइ आपु ही दूर तें बोल्यौ त्यौं तमचोर॥671॥
जब राधा को ल्याइ कै हरि सों दियो मिलाइ।
तब धरि जसुमति रूप कौ हेरन लाग्यौ गाइ॥672॥