"अंग दर्पण / भाग 1 / रसलीन" के अवतरणों में अंतर
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वार वर्णन
मोर पच्छ जो सिर चढ़ै बारन तें अधिकाय।
सहस चखन लखि धनि कचन परे मान छिन पाय।।3।।
बेनी-वर्णन
बेनी बधि इक ठौर ह्वै अहि सम राखत ठौर।
बिथुरि चँवरि से कच करत मन बिथोरि धरि चौंर।।4।।
जे हरि रह त्रिलोक मों कालीनाथ कहाइ।
ते तुव बेनी के डसे सब जग हँसे बनाइ।।5।।
भनत न कैसैहू बनै या बेनी को दाय।
तुव पीछे गहि जगत के पीछे परी बनाय।।6।।
मैमद-वर्णन
मानिक मनि ये नहिं जरे मैमद झबियन लाय।
फनि तजि मनि पीछे परे तुव बैनी के आय।।7।।
मैमद झबियन मुकुत लखि यह आयो जिय जागि।
सखि हित पीछे राहु के नखत रहे हैं लागि।।8।।
जूरा-वर्णन
चंदमुखी जूरो चितै चित लीन्हों पहिचानि।
सीस उठायौ है तिमिर ससि कौं पीछे जानि।।9।।
यो बाँधति जूरो तिया पटियन को चिकनाय।
पाग चिकनिया सीस की यातें रही लजाय।।10।।
पाटीयुत माँग-वर्णन
माँग लगी ते बधिक तिय पाटी टाटी ओट।
दोऊ दृग पच्छीन को हनत एक ही चोट।।11।।
अरुन माँग पटिया नहीं मदन जगत को मारि।
असित फरी पै लै धरो रकत भरी तरवारि।।12।।