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"अंग दर्पण / भाग 2 / रसलीन" के अवतरणों में अंतर

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भाल-वर्णन

पाटी दुति जुत भाल पर राजि रही यहि साज।
असित छत्र तमराज जनु धर्यो सीस द्विजराज।।13।।

वा रसाल को लाल किन देखत होंहि निहाल।
जाहि भाल तकि बाल सब कूटति हैं निज भाल।।14।।

जोरि सकत रसलीन निहिं भाल साथ को हाथ।
चंद कलंकी करि दयो बिधि सोहाग जिहिं माथ।।15।।

ढुरे मांग ते भाल लौं लरके मुकुत निहारि।
सुधा बुंद मनु बाल ससि पूरत तम हिय फारि।।16।।

टीका-वर्णन

वारन निकट ललाट यों सोहत टीका साथ।
राहु अहत... मनु चन्द में राख्यों सुरपति हाथ।।17।।

लाल बिन्दी-वर्णन

लाल सुबेंदुली भाल तकि जग जानी यह रीति।
तेरे सीस प्रतीति कै बसी मीत की प्रीति।।18।।

पीत बिन्दी-वर्णन

सोहन बेंदी पीत यों तिय लिलार अभिराम।
मनु सुर-गुरु को जानि के ससि दीनों सिर ठाम।।19।।

स्वेत बिन्दी-वर्णन

यहि बिधि गोरे भाल पै बेंदी सेत लखाय।
मनो अदेवन हित अभी लेत सुक्र ससि आय।।20।।

स्याम बिन्दी-वर्णन

दई न बाल लिलार पै बेंदी स्याम सुघारि।
माँग स्यामता उरग लौं बैठ्यो कुण्डल मारि।।21।।

आड़-वर्णन

तुव लिलार इन आड़ किय निज गुन बिदित निदान।
अड़ि राखत है आड़ ह्वै आड़ आड़ जग प्रान।।22।।

खौर-वर्णन

सूघी पटिया माँग बिनु माथे केसर खौर।
नेह कियो मनु मेघ तजि तड़ित चंद सों दौर।।23।।

नारी केसर खौर यह प्यारी माथे मांह।
झाँकी दरपन भाल मधि सीस किनारी छांइ।।24।।