भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अंग दर्पण / भाग 12 / रसलीन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रसलीन |अनुवादक= |संग्रह=अंग दर्पण /...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

08:11, 22 जुलाई 2016 के समय का अवतरण

सुकुमारता-वर्णन

क्यों वा तन सुकुमार तनि देख न पैयन नीठि।
दीठि परत यों तरफरति मानो लागी दीठि॥126॥

लगत बात ताको कहा जाकौ सूछम गात।
नेक स्वास के लगत ही पास नहीं ठहरात॥127॥

अंगवास वर्णन

नैन रंग ते सुख लहत नासा बास तरंग।
सोनो और सुगन्ध है बाल सलोनो अंगो॥128॥

इत उत जानन देत छिन फाँसि लेत निज पास।
मीन नासिका जगत की बंसी है तुव बास॥129॥

कुच-वर्णन

उठि जोबन में तुव कुचन मो मन मार्यो धाय।
एक पंथ दुई ठगन ते कैसे कै बचि जाय॥130॥

कठिन उठाये सीस इन उरजन जोबन साथ।
हाथ लगाये सबन को लगे न काहू हाथ॥131॥

निरखि निरखि वा कुचत गति चकित होत को नाहिं।
नारी उर ते निकरि कै पैठत नर उर माँहिं॥132॥

कुचस्यामता-वर्णन

गोरे उरजन स्यामता दृगन लगत यहि रूप।
मानों कंचन घट धरे मरकत कलस अनूप॥133॥

रोमावलीयुत कुचस्यामता-वर्णन

रोमावलि कुच स्यामता लखि मन लहयो विचार।
समर भूप उर सीस पर धरी फरी समरार॥134॥

स्वेत कंचुकी-वर्णन

कनक बरन तुव कुचन की अरुन अगर के संग।
धरत कंचुकी स्वेत में बने फूल को रंग॥135॥