"अंग दर्पण / भाग 13 / रसलीन" के अवतरणों में अंतर
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नील कंचुकी-वर्णन
नील कंचुकी में लसत यों तिय कुच की छांह।
मानों केसर रँग भरे मरकत सीसी मांह॥136॥
अरुण कंचुकी-वर्णन
बिधु बदनी तुव कुचन की पाय कनक सी जोति।
रंगी सुरंगी कंचुकी नारंगी सी होति॥137॥
हरित कंचुकी वर्णन
हरित चिकन की कंचुकी पाय कुचन के थान।
हरत हराई तें हियो बूढ़न लूटत प्रान॥138॥
पीत कंचुकी-वर्णन
पीतांगी पर यों रही बिन्दी कनक सुहाय।
मानों कंचन कलस पै लैसिम किन्हों लाय॥139॥
कंचुकी जाली-वर्णन
जाली अंगिया बीच यों चमक कुचन की होति।
झझरी कै तुम्बन लसै ज्यों दीपक की जोति॥140॥
रोमावली-वर्णन
रोमावलि रसलीन वा उदर लसति इहिं भाँति।
सुधा कुंभ कुच हित चली मनो पिपिलिका पांति॥141॥
अमल उदर वा सुधर पै रोमावलि को पेख।
प्रकट देखियत स्याम की आवागवन की रेख॥142॥
नाभीयुत उर-त्रिबली-वर्णन
मो मन मंजन को गयो उदर रूप सर धाय।
परयो सुत्रिबली झँवर ते नाभि भँवर मैं जाय॥143॥
एक बली के जोर ते जग मो बास न होय।
तुव त्रिवली के जोर तें कैसे बचिहैं कोय॥144॥
उदर बीच मन जाय के बूड्यों नाभी माँहि।
कूप सरोवर के परे कोऊ निकसत नाहिं॥145॥