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"मध्या की सुरतांत / रसलीन" के अवतरणों में अंतर
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पाटी गई सरकि करकि कर चूरी गई,
दरकि गई है उत आँगी कुच चारु पै।
छूटि गए बार सब टूटि गए उर हार,
मिटि गई रसलीन बेंदुली लिलार पै।
काजर न नैन ठीक, लागी है कपोल पीठ,
पान की रही न लीक ओठ सुधा सार पै।
रति मानि कै निहारि सोभा वारें सब नारि,
सगरे सिँगार तेरे बिगरे सिंगार पै॥29॥