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1.
चंचल चपल चारु जामें कर बेलि सम,
देखत हीं चख चित मचक सी खात है।
रंचक दिखाइ के दुरत स्याम अंबर में,
उदित अनूप जातरूप सब गात है।
कारी भारी अँधियारी रैन करि पून्यों सम,
पावस की रितु मधि अधिक सुहात है।
देखे कोऊ भामिनी रसाल काम कामिनी सी,
नाही रसधामिनी जो दामिनी की बात है॥36॥
2.
स्यामल सारी सजी उत राधिका ठाढ़ी भई निज पौरि सुहाए।
कान्हउ तौ इत द्वार मैं आइ खड़े भए पामरी पीत रँगाए।
चातुरता रसलीन कहा कहि आपने भेद न काहू जनाए।
जो रँग बोर रहे घट सों चित के पट दोऊ दुहन दिखाए॥41॥
2.
सारी रैन स्याम बास बसे हैं सहेट धाम,
बीति गयो चारो जाम भयो परभात है।
बिदा ह्वै चल मुरारि त्योंहि ओट कै किवारि,
ठाढ़ी भई सुकुमारि देखन के घात है।
आहट तिया को पाइ रसलीन ललचाइ,
ता छन को भाय मों पै बरनो न जात है।
लाल के वियोग उत बाल पछताति ठाढ़ी,
बाल के बिछोह इत लाल पछतात है॥42॥