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"बसंत ऋतु नायिका / रसलीन" के अवतरणों में अंतर
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1.
जाही जोई जाने है सो दरस सदा ही चाहै,
रूप मंजरी के सर केवल निकाई है।
सौहै कुच गेंद पै सिंगार हार मालती के
मोतिया से दंत कुंद केतक लजाई है।
सेवत हजार मखमल में कमल पद,
रसलीन पछतानी दाऊदी सुहाई है।
चाँदनी सी सेत सारी चंपक बरन प्यारी
बनवारी पास फुलवारी बनि आई है॥68॥
2.
पंचरग चूनरी सुमन सब फूले तामें
भूषन के फुंदन भँवर छबि पाई है।
मुकुत स्रवत ते रसाल बौर देखियत,
रसलीन कंठ ध्वनि कोकिल लजाई है।
करन कै पल्लौ नव पल्लव समान लसैं,
स्वाँस कै सुबास पौन दच्छिन सुहाई है।
कियो जागे मन मनमथ पार ऐसो तत
प्यारी आज कंत पै बसत बनि आई है॥69॥