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1.
नाह के सैन निहारि प्रिया मिस काज को ठान नहीं ढिग जाती।
देखि चरित्र बिचित्र तिया को उठे कर स्याम बिलोकन ताती।
चाहत लोगन दीठि बचाय करै छल सों गहि खेल सुहाती।
ज्यों ज्यों बसाय नहीं कछु लाल के त्यों त्यों फिरै घर में मुसुकाती॥80॥
2.
नाँह के सैन निहारि प्रिया सुखभौन की ओर नहीं नियराती।
घात न लागत लोगन के ढिग कैसे करै पिय केलि सुहाती।
एक तो पीतम को बहरावइ एती पै बात कही नहीं जाती।
ज्यों ज्यों बसाय नहीं कछु लाल के त्यों त्यों फिरै घर में मुसुकाती॥81॥