भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"गैलारौ / गुणसागर 'सत्यार्थी'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatBundeliRachna}} <poem> जी...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

01:04, 28 जुलाई 2016 के समय का अवतरण

जीकौ
ओर न छोर
ऐसी है गैल,
गैल गहें चलो जात
हेरौ, वौ गैलारौ।
किदना निगौ?
कोऊ नइँ जानत
बस निगत सबइ नें देखौ,
मानों
चका होय गाड़ी कौ,
भमत जात है ऐसें
जैसें पथरा ढँड़कत-
चूना पीसत की चकिया कौ।

लीला-धौरा
खैंचत जिऐ समै के बैला
और संग में
पिसत जात है दिन चूना-से
हराँ-हराँ सब
जिँदगानी के।