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आवत जात समीप लखत न कोई रे।
बिन सतगुरु के उपदेश भ्रमत नर सोई रे।
त्रिकुटी महल विसावल जहाँ धुनल्याईये।
सुरत शब्द में राख और बिसराईये।
अधर अनूप निवास पुरष जहं रत है।
आठ पहर दिन रैन सोहम् करत है।
लगो सुहावन देस जगो मन थक रहो है।
लियो सुरत पहचान अचल पद पाईये।
परमधाम परगास और जंजाल है।
जूड़ीराम चितचेत शबद की ढ़ाल है।